અધ્યાય ૧૩ – શ્લોક ૯,૧૦,૧૧ – ગીતાજી
જય શ્રી કૃષ્ણ … શ્લોક ની છબી લોડ થઈ રહી છે….
Find the same shloka below in English and Hindi.
TheGita – Chapter 13 – Shloka 9,10,11
Shloka 9,10,11
Non-attachment, non-identification of self with son, wife, house, and the rest, and constant even-mindedness on the occurrence of the desirable and undesirable.
पुत्र, स्त्री, घर और धन आदि में आसक्ति का अभाव, ममता का न होना तथा प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना ।। ९ ।।
Unflinching devotion to Me by the Yoga of non-separation, resort to solitary places, distaste for the society of worldly-minded people.
मुझ परमेश्वर में अनन्य योग के द्वारा अव्यभिचारिणी भक्त्ति तथा एकान्त और शुद्ध देश में रहने का स्वभाव और विषयासक्त्त मनुष्यों के समुदाय में प्रेम का न होना ।। १० ।।
…Constant awareness of the Self (self-knowledge),perception of the end of true knowledge – that is declared to be the true knowledge, and what is opposed to it is ignorance.
अध्यात्म ज्ञान में नित्य स्थिति और तत्व ज्ञान के अर्थ रूप परमात्मा को ही देखना —–यह सब ज्ञान है और जो इससे विपरीत है,वह अज्ञान है —-ऐसा कहा है ।। ११ ।।
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|| જય શ્રી કૃષ્ણ ||