અધ્યાય ૧૩ – શ્લોક ૭,૮ – ગીતાજી

અધ્યાય ૧૩ – શ્લોક ૭,૮ – ગીતાજી

 

જય શ્રી કૃષ્ણ શ્લોક ની છબી લોડ થઈ રહી છે….

 

TheGitaGujarati_13_78
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TheGita – Chapter 13 – Shloka 7,8

Shloka 7,8

Humility, modesty, non-injury, forgiveness, uprightness, service of the teacher, purity, steadfastness, self-control.

श्रेष्टता के अभिमान का  अभाव, दम्भाचरण का अभाव, किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार न सताना, क्षमाभाव, मन-वाणी आदि की सरलता, श्रद्बा भक्त्ति सहित, गुरु की सेवा, बाहर-भीतर की शुद्भि अन्त:करण की स्थिरता और मन इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह ।। ७ ।।

Indifference to the sense-objects (such as sound, touch, etc.);absence of egoism (e.g. I am superior to all); reflection on the evil in birth, death, old age, sickness and pain.

इस लोक और परलोक के सम्पूर्ण भोगों में आसक्ति का अभाव और अहंकार का भी अभाव, जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दुःख और दोषों का बार-बार विचार करना ।। ८ ।।

 

 

 

 

 

 

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|| જય શ્રી કૃષ્ણ ||

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